Saturday, December 27, 2014

मुहब्बत

मुहब्बत करनेवाले कम न होंगे…

... द्वैत से एकत्व के नैसर्गिक क्रिया-कलाप में सन्नद्ध सृष्टि के कण-कण में प्रतिक्षण सिर्फ प्रेम की हलचल हो रही है। प्रेम गति में ही सद्गति है।...omar_khayyam_ba18
श्क की ही तरह मुहब्बत शब्द भी प्रेम के अर्थ में खूब इस्तेमाल होता है। यह मूलतः सेमेटिक भाषा परिवार का शब्द है और अरबी भाषा से फारसी, उर्दू और हिन्दी में आया है। मुहब्बत की रिश्तेदारी भी एक जैसे मिलते-जुलते अर्थ वाले कई शब्दों से है और इन तमाम शब्दों से हिन्दी वाले भी कमोबेश परिचित हैं।
जिस तरह इश्क शब्द की रिश्तेदारी इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से भी है (कुल-गोत्र को और छोटे दायरे में देखें तो इसे भारत-ईरानी परिवार का भी कह सकते हैं) और सेमेटिक भाषा परिवार से भी और दोनों ही परिवारों में इश्क का रिश्ता प्रकृति यानी वनस्पति से जुड़ता है। अरबी में ‘श्क’ (shq) धातु को इश्क का मूल माना जाता है वहीं इश्क भारोपीय मूल का है इसके भी पुख्ता प्रमाण हैं और इसका संबंध संस्कृत-अवेस्ता (प्राचीन ईरानी) के इश्-इष् से है जिनमें लगाव, गतिवाचक, प्रेम, चाह से लेकर कामना, इच्छा जैसे भाव हैं। प्रेम का तादात्म्य प्रकृति से है, सृष्टि की गति से है। द्वैत से एकत्व के नैसर्गिक क्रिया-कलाप में सन्नद्ध सृष्टि के कण-कण में प्रतिक्षण सिर्फ प्रेम की हलचल हो रही है। प्रेम गति में ही सद्गति है। अरबी भाषा में बीज के लिए एक धातु है हब्ब (habb/hibb) जिसमें मित्र, प्रिय, पात्र, जैसे भाव हैं।
श्क की रिश्तेदारी प्रेमवल्लरी यानि अरबी की आशिका और फारसी की इश्क-पेचाँ से है उसी तरह हब्ब धातु में भी मित्रता, प्रिय आदि जो भाव हैं वह यूं ही नहीं हैं। एक तरह जहां इसका अर्थ मित्र है, दूसरी ओर इसका मतलब होता है बीज। गौर करें बीज और प्रिय में भाव एक ही है। यही बात पात्र अर्थात बरतन में भी है। एक बीज को धरती के गर्भ में स्थान मिलता है। धरती का स्नेह-स्पर्श पा कर उसमें अंकुरण होता है और बीज से हटकर धीरे-धीरे एक समूचा पृथक अस्तित्व नजर आने लगता है। जीवन का स्पंदन आकार लेने लगता है। बिना प्रेम के जीवन संभव नहीं है। सदियों से वनस्पति जगत का विस्तार विकिरण के जरिये होता है। विकिरण यानी बीजों का बिखरना, फैलना। अरब के रेगिस्तान में बीजों के बिखरने की क्रिया को हिब्बत कहते हैं। बीज यानी हब्ब और बीजों का बिखरना यानी हिब्बत। यह अरबी प्रत्यय (अत) संज्ञा-सर्वनाम को क्रियारूप में बदलता है।
शुष्क रेगिस्तान में बीजों का बिखराव यानी हिब्बत!!! धरती से बीजों के मिलन का क्षण। बीज, जिनमें जीवन की धड़कन है, अजाने-अजन्मे से रूपाकार जिनमें कुलबुला रहे हैं। और धरती, किसी बीज के भीतर पनपती जीवन की संभावनाओं को अपनी कोख में सुरक्षित स्नेहgrape&wine की गर्मी से तपाना चाहती है। यह बीज कुदरत का है। ख़ल्क यानी सृष्टि की सृजन भावना का प्रतीक है यह बीज जो धरती की कोख में पलता है। यही प्रेम है। हिब्बत में अरबी उपसर्ग म जुड़ने से बनता है महब्बत जिसे हिन्दी में मुहब्बत कहा जाता है। इश्क के नज़रिये से भी देखें तो और भी दिलचस्प नतीजे मिलते हैं। अरबी हिब्ब का एक अर्थ होता है अंगूर या अंगूर का बीज। अंगूर का पौधा भी इश्क-पेचां की तरह ही बेलदार पौधा होता है। प्रकृति में अंगूर की बेल भी किसी न किसी छोटे-बड़े, तने वाले वृक्ष का सहारा लेकर ही फैलती है। वृक्ष से लिपटने, चढ़ने की क्रिया में चाहत, कामना, समर्पण जैसे भाव यहां भी सार्थक हो रहे हैं। अंगूर के रस में नशा होता है। यह नशा प्यार का नशा है। यह यूं ही नहीं आ जाता। इसमें धरती की गर्माहट, बसी है। स्नेहसिक्त है यह रस जो धरा की कोख से निकला है।
रबी में मित्र को हबीब कहते हैं जो इसी धातुमूल से जन्मा है। हबीबी का मतलब होता है प्रियतम, सुप्रिय, प्यारा, दुलारा। महब्बत का मतलब होता है स्नेह-स्पर्श अथवा प्रेमाभिव्यक्ति। प्यार जताना। जिससे प्यार किया जाता है वह पुरुष पात्र कहलाता है महबूब और स्त्री पात्र कहलाती है महबूबा। हब्ब में मित्र का भाव है इसीलिए इसका बहुवचन हुआ हुबूब। इसमें  उपसर्ग लगने से बनता है महबूब या महबूबा। कई बार यह अंगूरी ही किन्ही प्रेमपात्रों के लिए महबूब और महबूबा साबित होती है। नतीजा वही होता जो प्रेम का चरित्र है। दो में से किसी एक को अपना अस्तित्व खोना पड़ता है। इसे चाहें समर्पण कहें या कुर्बानी!!!! अक्लमंद इस प्रेम को बेवकूफी भी कहते हैं।

  से साभार शब्दों का सफर (अजित वडनेरकर)

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