Wednesday, March 25, 2015

हिंदी ही बोलें

गुलाब चंद जैसल
(स्नातकोत्तर(हिंदीअध्यापक
हिंदी ही बोलेंहिंदी अपनाएं

हिंदी सब समझतेआप चाहे जहाँ जाएँ |

हिंदी है राष्ट्र भाषाहिंदी है अभिलाषा |

एक सूत्र में बांधेगी सबकोयह सद्पुरुषों की आशा ||

हिंदी में बोलेंहिंदी विचार करें|

हिंदी में हीदैनिक व्यवहार करें ||

विश्व की तीसरी भाषाहिंदी कहलाए |

मारिससइंडोमलयपाकबंगला में बोली जाए ||
हमारी राजभाषा हिन्दी है। उत्तर भारत में हिन्दी पट्टी है जहां कई राज्यों की राजभाषाहिन्दी है। भारत के संविधान में इन राज्यों को '''' श्रेणी में रखा गया है। संवैधानिकरूप से हिन्दी को राष्ट्रभाषा नहींराजभाषा कहा गया है। 14 सितम्बर 1949 को हिन्दीको संघ के संविधान में राजभाषा का दर्जा दिया गया और संविधान में बाकायदा इस कीव्याख्या की गई। राजभाषा के रूप में हिन्दी की विजय मात्र एक मत से ही हुई थीऐसाकहा जाता है। 'श्रेणी में हिमाचलहरियाणादिल्लीराजस्थानउत्तर प्रदेशमध्यप्रदेशबिहार तथा सभी संघ शासित राज्य आते हैं। इस क्षेत्र को ही हिन्दी पट्टी कहा जाताहै।
हिन्दी को संघ की भाषा तो माना किन्तु साथ-साथ अंग्रेजी के प्रयोग की भी अनुमति दीगई जिसे बार-बार बढ़ाया जाता रहा जिसके कारण अंग्रेजी का वर्चस्व बराबर बना रहा।
पहले साहित्य में एक ''हिन्दी सेवी'' जमात होती थी। बहुत से साहित्यकार या हिन्दी केअध्यापक अपने को हिन्दी सेवी कहा करते थे। हिन्दी के लिए संसद के बाहर धरना देतेथे। एक प्रेमी ने तो संसद में छलांग भी लगा दी थी। अब हिन्दी लेखक अपने को हिन्दीप्रेमी नहीं कहते। अंग्रेजी स्कूलों की बहुतायत हैजहां हिन्दी प्रेमियों के बच्चों को स्कूलमें हिन्दी बोलने पर केनिंग की सजा होती है।
हिन्दी के राजभाषा बनने पर हिन्दी में एम0किए 'हिन्दी सेवियोंकी भी पूछ बढ़ी।कोयला से ले कर रेल मन्त्रालय तक हिन्दी अधिकारियों के पद सर्जित हुये। बैंकों में तोअच्छे ग्रेड में हिन्दी अधिकारी लगे। ऐसा भी समय  गया था कि हिन्दी-विषय केवललड़कियां ही लेती थीं। समय बदला और प्राईवेट कोचिंग अकेडेमियों में रतनप्रभाकरपढ़ाने वाले हिन्दी अधिकारी लगने लगे। 'हिन्दीके साथ 'अधिकारीशब्द लगा तो आदरसूचक था। वेतन और ग्रेड भी आकर्षक था। यहां हिन्दी सही मायनों में रोटी रोजी के साथजुड़ी।
संसदीय राजभाषा समिति के साथ लगभग सभी मन्त्रालयों और बैंकों में 'राजभाषासमितियांबनीं। ये समितियां गर्मियों में पहाड़ों पर 'निरीक्षणहेतु दौरे पर आने लगीं।राजनेताओं के साथ
कभी-कभी कोई लेखक या कवि भी इस का सदस्य बनने का सौभाग्य पा लेता। बैंकों कीऐसी समितियों के तो ठाठ ही अलग होते हैं।
राजभाषा के उत्थान के लिए कुछ ऐसी संस्थाएं बनीं जो साल में एक बार 'अखिलभारतीय राजभाषा सेमिनारकर के यश और धन कमाने लगीं। कुछ संस्थाएं तो आजतक चली हुई हैं और हिन्दी को पंचसितारा होटल तक ले जाने का दावा करती हैं। येसंस्थाएं निगम बोर्डो और बैंकों से उनके खर्चे पर और भारी फीस ले कर पंचसिताराहोटलों में सेमिनार करवा रही हैं। केन्द्र और राज्य सरकारों से हिन्दी के नाम पर विज्ञापनऔर सुविधाएं अलग लेती हैं। ऐसी एक संस्था के आयोजन में जाने का अवसर मिला।आयोजन आरम्भ होने से पहले अर्धसरकारी संस्थानोंकम्पनियों के प्रतिनिधि सपत्नीकहोटल के कमरों से 'डेलीगेटका बैच लगाए उतर रहे थे और नीचे आते ही रिशेप्शन परटूरिस्ट प्वांइंटों की जानकारी ले रहे थे।
किसी भी भाषा को राजभाषा बनाना सरकार की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है। मुगलकाल में उर्दू-फारसी का चलन सरकार ने किया। आज भी गांव देहात के अनपढ़ बुजुर्गसत्तर प्रतिशत उर्दू के शब्दों का प्रयोग जाने अनजाने में करते हैं। इसी तरह ब्रिटिशशासन ने अंग्रेजी को थोपा। आज भी ठेठ ग्रामीण महिलाएं कहती हैं“आज मेरा मूड ठीकनहीं है या मैं बोर हो रही हूं।''
हिमाचल प्रदेश में ''हिमाचल प्रदेश अधिनियम,1975'' पारित हुआ जिसके अनुसारप्रदेश की राजभाषा नागरी लिपि में हिन्दी घोषित की गई।
इसी तरह की इच्छाशक्ति का परिचय दिया था हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मन्त्रीशान्ताकुमार ने। उन्होंने सरकार से आदेश करवा दिये कि 26 जनवरी 1978 से सरकारका सारा कामकाज हिन्दी में होगा। इस आश्य की अधिसूचना 12 दिसम्बर 1977 काजारी की गई जिसमें मेडिकल कॉलेजविधि विभाग और तकनीकी विभाग के अधीनऔद्योगिक प्रशिक्षण को छोड़ कर सारा कामकाज हिन्दी में करने के आदेश थे। इस परबहुत हाय-तौबा मचीहिन्दी टंकण यन्त्र  होनेहिन्दी स्टेनो-टाईपिस्ट  होने जैसे कईबहाने भी लगाए गये। किन्तु सरकार की इच्छा शक्ति थी तो हिन्दीकरण लागू हुआ। उससमय इसे हिन्दी में ''स्विच ओवर'' कहा गया था। उस समय जो मुख्य सचिव थेवेहिन्दी में हस्ताक्षर तक नहीं कर सकते थे। सब वाधाओं के बाबजूद भी 'स्विच ओवर'हुआ। हिन्दी टंकणआशुलिपि का प्रशिक्षण सरकारी स्तर पर दिया गया। अग्रेजी टंकणमशीनों की खरीदअंग्रेजी टाईपिस्टोंआशुलिपिकों की नियुक्ति पर पूर्ण प्रतिबन्धलगाया गया। जहां मुख्य मन्त्री जातेरातों-रात सड़कों के मील पत्थरसर्किट हाउसों केकमरे 'कक्षोंमें बदल जाते। कोई भी अधिकारी मुख्य-मन्त्री को अंग्रेजी में फाईल प्रस्तुतनहीं कर सकता था। ऐसे में कई तरह के मजाक भी बने कि यदि कुछ अनुमोदितकरवाना है तो हिन्दी में नोटिंग लिखोसचिवों को हिन्दी पढ़नी आती नहींजो मर्जीहिन्दी में लिख डालोअनुमोदित हो जाएगा।
हिन्दी लागू होने पर जिला भाषा अधिकारियों के भाव बढ़ गए थे। अंग्रेजी शब्दों के पर्यायजाने के लिए भाषा अधिकारी ही मूल स्रोत थे। एक बार जनजातीय जिले लाहुल स्पिति कुमुख्यालय केलंग में एस.डी.एमके पास जाना हुआ तो एक अधिकारी एक परिपत्र हाथमें लिए आए जिसमें लिखा थाइस विषय में 'अधोहस्ताक्षरीसे बात करें। वे परेशान थे।कहने लगे, 'यह अधोहस्ताक्षरी पता नहीं कौन है। मैं डी.सी., .डी.एमसबसे मिलआयाअब आप से मिलने आया हूं।'' आप अब अधोवस्त्र पहन कर अधोहस्ताक्षरी सेमिलिए नहीं तो अधोगति को प्राप्त हो जाएंगे... एस.डी.एमने मजाक किया। ऐसे हीकुछ मजाक रेल को लोहपथगामिनी कहआरम्भ में किए गए।
इसके बाद कई उतार चढ़ाव आते रहे। कभी हिन्दी का प्रयोग बढ़ाकभी घटा। हिन्दीकरणका मुख्य उद्देश्य जनता का काम जनता की भाषा में होने से है। प्रशासन की भाषा एकअलग तरह की भाषा होती है जो सीधे सीधे अपने विषय पर बात करती है। उसमेंसाहित्यिक या क्लिष्ट भाषा की अपेक्षा नहीं रहती। अतसरकार में सरल औरसम्प्रेष्णीय भाषा पर बल देने की आवयश्कता रहती है। सरल भाषा को प्रायअनुवाद कीभाषा कठिन बनाती है। अनुवाद की भाषा हमेशा क्लिष्ट रहती है। इसीलिए कानूनीनियमोंअधिनियमों की हिन्दी समझ में नहीं आती। जनता से बात करने के लिए सरलसुबोध जनता की भाषा प्रयोग में लानी चाहिए। एक बार हिन्दी दिवस पर मुख्य अतिथिको भाषण का मसौदा भेजा गया। अपनी व्यस्तता के कारण वे भाषण पहले पढ़ नहींपाएं। कार्यक्रम के दौरान ही उन्होंने भाषण पर नजर डाली तो उसमें ऐसे-ऐसे शब्द लिखेथे जिनको पढ़ना और उच्चारण करना बहुत कठिन था। वे विभागाध्यक्ष पर बहुत गुस्साएऔर फुसफसाए कि यह क्या लिखा हैकौन पढ़ेगा इसे। यह तो अंग्रेजी से भी कठिन है।खैर उन्होने खुद से भाषण दिया जो बहुत सटीक और संदेश देने वाला था। अंत में उन्होंनेकहा, ''विभाग वालों ने भी मुझे बड़ी मेहनत से कुछ लिख कर दिया है इसे मैं  पढ़ते हुएज्यों का त्यों प्रैस को देता हूं।''
मैंने स्वयं तीस वर्ष तक 'हिदी-हिन्दीका खेल खेला है। बार बार हिन्दी की बैठकें आनेपर एक पुस्तिका तैयार की गई थी जिसमें हिन्दी में जो जो हुआ उस का इतिहासक्रमबध्द तरीके से लिखा गया। महापुरूषों की कुछ उक्तियां भी डाली गईं। यह पुस्तिकाहर बैठक में और हर कार्यक्रम में एक कुंजी की तरह काम आती थी। वैसे ही कार्यालयों मेंजो एक बार भाषण तैयार किया जाता हैअगले वर्ष उसी को फायल से निकाल कर सन्बदल आगे कर दिया जाता है। जब किसी 'अंग्रेजी नोईंगसचिव के पास हिन्दी में नोट लेजाओ तो वह कहता, ''यह क्या लिख दिया यारअंग्रेजी में लिखा करो ताकि कुछ समझमें भी आए। अब कौन पढ़ेगा इसेतुम्हीं पढ़ कर सुनाओ... अच्छा लाओकुछ उलटासीधा तो नहीं लिखा है न। कहां साईन करना है? ''इतना विश्वास तो रहता ही थाअधिकारियों पर कि चाहे हिन्दी में लिखा है पर ठीक ही लिखा होगा।
भारत सरकार के स्तर पर यूं तो कई शब्दावलियां निकाली गईं हैं। राजभाषा आयोग,विधि आयोग,वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग आदि द्वारा शब्दकोष परशब्दकोष निकाले गए हैं किन्तु पूरे देश में शब्दों का मानकीकरण अभी नहीं हुआ।''राज्य'' को मध्यप्रदेश में ''शासन'' कहा जाता है। 'लोक निर्माण विभाग'' को कहीं''सार्वजनिक निर्माण विभाग'' कहा जाता हैफ़ाइल को कहीं मिसिलकहीं नस्ति कहाजाता है। सिविल अस्पताल को कहीं असैनिककहीं नागरिक अस्पताल लिखा जाता है।यानि यह शब्दावली राज्य दर राज्य तो भिन्न है हीएक प्रदेश में भी कई रूपांतरप्रचलित हैं। सर्किट हाउस को कहीं विश्राम गृहकहीं परिधि गृह लिखा जाता है।
हिन्दी के प्रचार के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि उर्दू-फारसीअंग्रेजी तथा स्थानीयभाषाओं के शब्दों को ज्यों का त्यों अपना लिया जाए और सरल से सरल आम बोलचालकी भाषा का प्रयोग किया जाए। कुरतापाजामा दरवाजाखिड़कीकलमदवातस्कूल,अस्पतालइंस्पेक्टरबोर्डवारंटडिग्री आदि ऐसे शब्द हैं जो आज एक ग्रामीण भीबोलता और समझता है। प्रचलन प्रयोग से फैलता है। आरम्भ में सचिवालयमन्त्रालय,अभियन्ताटंककअनुभागप्रशासनआबंटनअधीक्षकनिरीक्षकसर्वेक्षकपरिचर,नियन्त्रक आदि शब्द अजीब लगते थे। आज इन्हें सभी प्रयोग करते हैं।
एक बार आरम्भ में एक संस्कृत महाविद्यालय में संस्कृत दिवस मनाने गए तो वहां कोईनहीं जानता था कि संस्कृत दिवस भी कोई दिवस होता है। अब तो आलम यह है कि हरदिन कोई  कोई दिवस है। कभी बाल दिवस हैकभी वृध्द दिवसकभी दिल दिवस हैतो कभी आंख दिवसकभी सास दिवस है तो कभी बहु दिवस। यह दिवस अब विश्वस्तर पर मनाए जाते हैं। तो हिन्दी दिवस मनाने में क्या हर्ज़ है। कम से कम हिन्दी वालोंको तो यह दिवस जोश से मनाना चाहिए। भाषा का विकास व्यवसाय से जुड़ा है। हिन्दीयदि रोटी भी देने लगी है तो इसे धूम से मनाईए।

1 comment:

  1. Borgata Hotel Casino & Spa in Atlantic City - MapYRO
    Find 속초 출장안마 reviews and discounts for 의정부 출장샵 AAA/AARP 안동 출장안마 members, seniors, long 안동 출장안마 stays & military members. Save 광주광역 출장샵 big with new EQC ratings, ratings & reviews from 1476 hotels.

    ReplyDelete